अच्छे उददेश्यों के पीछे का हठ ही दुढ संकल्प
कहलाता है। आधी सफलता संकल्प को
दृढ़ता में ही छिपी रहती है।
वेसे तो सामान्यतया हठ ठीक नहीं माना जाता
लेकिन ग्लानीवश हठ हो और इसकी पूर्ति का
उद्देश्य सही हो तो हट भी गुण बन जाता है। राजा
उत्तानपाद की टो पत्नियां थीं सुनीति और सुरुचि। इनसे
उन्ह दो पुत्र हुए ध्रुव और उत्तम। एक बार राजा
सिंहासन पर बैठे थे ठनकी गोद में उत्तम बैठा था
तभी ध्रूव बहां आए।
वे भी अपने पिता की गोद में
बैठना चाहते थे । यह जानकर ध्रुव की विमाता सुरुचि
ने ताना मारते हुए कहा- तुम तपस्या कर मेरी कोख
से जन्म लो, तभी राजा की गोद में बैठ सकते हो।
इस बात से भ्रुव ने बड़ा अपमानित महसूस किया।
उनके पिता राजा उततानपाद रानी
सुरुचि को अधिक स्नेह करते थे,
अतः वे भी मौन रहे।
धुव ने नारद से प्रेरणा ली
और पाँच वर्ष की आयु में
यमुनातट पर मधुवन में तपस्या
करने लगे। उनकी तपस्या से
प्रसन्न होकर विष्णु ने इन्हें बर
दिया था, वे सब लोकों, ग्रेहों,
नक्षत्रों के ऊपर आधार बनकर
स्थित रहेगे। इसालिए उनका
स्थान ध्रुबलोक कहलाता है।
तपस्या के पश्चात ध्रुव
राज्य में लौटे और राज्य प्राप्त किया।
इतिहास बताता है कि ध्रुव ने कई वर्षों तक एक
बहुत ही अच्छा शासन किया, तब से वे इस बात का
आदेश माने गये कि राजा यदि तपस्वों हो तो ने राज्य की नीतिया भी आदरस होंगी और प्रजा सुखी रहेगी। तप के पीछे जब तक
हठ नही होगा तप भी पुरा नही हो सकता। कहा जा सकता है की अच्छे इरादो के पीछे का हठ ही मजबुत संकल्प कहलाता है। पचास प्रतिशत सफलता तो
संकल्प मजबूती मे ही छिपी रहती है, इस लिए कोई भी संकल्प लेकर उसे पुरा करने के लिए दुढ संकल्पित रहना
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