बेहतर होगा आप लोगों से ना करना अथवा कहना सीख लें, इससे आपकी अनेक तकलीफें अपने आप खत्म हो जाएंगी। अक्सर आप लोगों से ना कहने में कतराते हैं। आप किसी काम के लिए मना करने से इसलिए बचते हैं, क्योंकि ऐसा कहने की आपमें हिम्मत नहीं होती- कहीं सामने वाला बुरा न मान जाए या मेरा कहीं बड़ा नुकसान न हो जाए, पर जरा विचार कीजिए
इसके बदले में आप अपना ज्यादा नुकसान कर लेते हैं, क्योंकि व्यक्तियों द्वारा दिए सभी काम आपके वश में नहीं हैं, पर्याप्त समय उस कार्य को करने के लिए नहीं है या फिर आप उस कार्य को करना नहीं चाहते, लेकिन आपने सामने वाले व्यक्ति के साथ अच्छे संबंध के चलते उसके लिए हामी भरी थी। बेहतर होगा कि आप लोगों से ना कहना सीख लें, इससे आपकी अनेक तकलीफें आपकी क्षमता नहीं है, आपके |
जीने की खत्म हो जाएंगी। शुरू-शुरू में लोग इस बात का बुरा मान सकते हैं, पर यह उससे कहीं बेहतर है कि काम लेकर ना कहा जाए अथवा टालमटोल किया जाए। ना कहना आपके दढ़ चरित्र का प्रतीक है और इसी तरह इसे न कह पाना कमजोर चरित्र का।
ना कहने की शुरुआत उन छोटी- छोटी बातों को मना करके कीजिए, जिसके कारण सामने वाले व्यक्ति के साथ आपके संबंधों पर कोई खास असर इस बात से ना पड़ने वाला हो और फिर इसी 'ना' कहने की आदत को हर उस कार्य पर लागू करते जाइए, जो आप नहीं कर सकते।
किसी से किसी बात के लिए ना कहने के पीछे के अपने कारण अथवा मजबूरी को खुलकर बताइए। ना कहने की शुरुआत सर्वप्रथम अपने घर के सदस्यों के साथ कीजिए, यहां आपको मना करने में आसानी रहेगी।
विशेषकर पढ़ने वाले छात्रों और व्यक्तियों को यह स्पष्ट तौर पर समझ लेना चाहिए कि उनके अध्ययन के दौरान आने वाले किसी भी मित्र या व्यक्ति को स्पष्टतौर पर वापस जाने के लिए कहना चाहिए।
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