गणेश चतुर्थी मुंबई, महाराष्ट्र, भारत का बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है। इसे हिंदू धर्म में बहुत ही प्रिय त्योहार माना गया है। इस पर्व को पूरे भारत में श्रद्धालु - भक्ति भाव और खुशी के साथ मनाते हैं। इसी दौरान स्कूल में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को गणेश चतुर्थी पर निबंध लिखने के लिए दिया जाता है। आज हम हमारे प्यारे विद्यार्थी मित्रों के लिए गणेश चतुर्थी पर हिंदी में निबंध दे रहे हैं।
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गणेश चतुर्थी का त्योहार भाद्रपद माह [ अगस्त-सितंबर ] शुक्ल पक्ष में चतुर्थी को "श्री गणेश" के जन्मदिवस के रूप में संपूर्ण भारत में मनाया जाता है। क्या अमीर और क्या गरीब, क्या बडे और क्या छोटे… सभी के लिए गणेश चतुर्थी सबसे विशेष उत्सव होता है। गणेश चतुर्थी 11 दिनों का एक विशाल महोत्सव है। जिसे सभी भक्तगण हर्षो-उल्लास के साथ मनाते हैं।
खासकर गणेश चतुर्थी की धूम सबसे ज्यादा मुंबई, महाराष्ट्र में देखने को मिलती है। यह महाराष्ट्र का सबसे बड़ा त्यौहार है।
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गणेश चतुर्थी के महोत्सव में गांव और शहरों के बाजारों में चहल-पहल देखने को मिलती है। जहां श्री गणेश की सुंदर मूर्तियां और उनके चित्र बाजारों में बिकते हैं। मिट्टी से बनी श्री गणेश की प्रतिमायें बहुत ही भव्य होती है। जिन्हें देखकर दिल को काफी सुकून प्राप्त होता है।
गणेश चतुर्थी के दिन भक्तगण "श्री गणेश" की प्रतिमा को अपने घर में उचित स्थान पर स्थापित करते हैं। लोगों का मानना है की, जिस दिन भगवान "श्री गणेश" घर में पधारते है, उस समय घर का माहौल पूरी तरह भक्तिमय हो जाता है। लोग प्रतिदिन सुबह नहा-धोकर श्री गणेश की आरती गाते / करते हैं। गणेश जी की पूजा में लाल चंदन, कपूर, नारियल, गुड, दुर्वा और उनके सबसे प्रिय मोदक का विशेष स्थान होता है। जैसे की, गणेश चतुर्थी का यह पर्व 11 दिनों का होता है। इसी दौरान घरों में पकवान और स्वादिष्ट मिष्ठान बनाए जाते हैं तथा से गणेश जी को भोग के रूप में चढ़ाया जाता है।
गणेश चतुर्थी के इस महोत्सव के दौरान 10 दिन गणेश जी की पूजा करने के बाद ग्यारहवें दिन गणेश जी की प्रतिमा को पानी में विसर्जित किया जाता है। जिसके लिए भक्तगण अपने पास उपलब्ध नदी या समुद्र में प्रतिमा को विसर्जित करते हैं। मुंबई में यह दृश्य देखने लायक होता है। संगीतमय माहौल के साथ गणेश जी की विदाई दी जाती है।
इस दौरान छोटे-बड़े सभी गणपति बाप्पा मोरया, मंगल मूर्ति मोरया की जयघोष करते हैं।
भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र श्री गणेश को बुद्धि और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। अक्सर हम शुभ कार्यों में शुभ-लाभ तथा रिद्धि-सिद्धि नाम का प्रयोग करते हैं। यह दोनों नाम भगवान श्री गणेश के साथ ही जुड़े हैं। रिद्धि और सिद्धि, भगवान गणेश की दो पत्नियां हैं तथा “शुभ और लाभ” उनके दो पुत्रों के नाम हैं।
कहा जाता है, भगवान श्री गणेश की पूजा के बिना कोई भी कार्य पूर्ण नहीं होता। इसीलिए हम अक्सर देखते हैं की, शुभ कार्य करने से पहले पंडित भगवान श्री गणेश की पूजा अवश्य करते हैं।
भगवान श्री गणेश को 12 अलग-अलग नामों से संबोधित किया जाता है। जिसे नीचे वर्णित किया गया है :-
भगवान श्री गणेश के 12 नाम
✱ गजानन : हाथी के मुख वाले।
✱ भालचन्द्र : सर पर चंद्रमा धारण करने वाले।
✱ गणाध्यक्ष : गुणों और देवताओ के अध्यक्ष।
✱ विनायक : न्याय करने वाले।
✱ कलि युग में गणेश धूम्रवर्ण है। गणेश घोड़े पर आरूढ़ रहते हैं तथा उनके दो हाथ हैं।
✱ लम्बोदर : बड़े पेट वाले।
✱ सुमुख : सुन्दर मुख वाले।
✱ एकदंत : एक दन्त वाले।
✱ विध्ननाशक : विध्न को ख़त्म करने वाले।
✱ विकट : विपत्ति का नाश करने वाले।
✱ गजकर्ण : हाथी के कान वाले।
✱ कपिल : कपिल वर्ण वाले
भगवान गणेश गजानन कैसे हुए?
पुराणों में कहा जाता है कि, माता पार्वती ने अपने मैल से एक पुतला बनाया और उसमें प्राण डालकर एक सुंदर बालक का रूप दिया। माता पार्वती के शरीर का ही एक अंश होने के कारण वह उनका पुत्र था। अपने पुत्र को द्वार पर खड़ा कर वह नहाने चली गई और बालक को आदेश दिया कि मेरी आज्ञा के बगैर किसी को भी भीतर न आने दें।
वह बालक द्वार पर पहरेदारी करने लगा। तभी कुछ समय के पश्चात वहां भगवान शंकर आ गए और वह अंदर जाने लगे, तभी उस बालक ने उन्हें वहीं रोक दिया। भगवान शंकर ने उस बालक को द्वार छोड़ने के लिए कहा। लेकिन मां पार्वती की आज्ञा का पालन करते हुए वह बालक भगवान शंकर को अंदर प्रवेश नहीं करने दे रहा था।
अब भगवान शंकर क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से उस बालक के गर्दन को धड़ से अलग कर दिया।
जब मां पार्वती अंदर से आकर देखती है तो उनके सामने उनके बालक का सर धड़ से अलग है, वह रोने लगती हैं। तब भगवान शंकर को ज्ञात होता है कि, वह बालक उनका ही पुत्र था।
भगवान शंकर अपने सेवकों को आदेश देते हैं कि, धरती लोक पर जिस बच्चे की मां अपने बच्चे की तरफ पीठ कर कर सो रही हो, उस बच्चे का सिर काट लाना। सेवक धरती लोग पर जाते हैं। काफी खोज करने के बाद उन्हें एक हाथी का बच्चा दिखाई देता है। जिसकी मां उसकी तरफ पीठ करके सो रही थी। सेवक उस हाथी के बच्चे का सिर काटकर भगवान शंकर के समक्ष प्रस्तुत करते हैं।
अब भगवान शंकर उस कटे हुए हाथी के सिर से अपने पुत्र के धड़ को जोड़कर पुनः जीवित कर देते हैं। इसी के साथ भगवान शंकर उस बालक को अपने सभी गणों के स्वामी घोषित कर देते हैं। तभी से उस बालक का नाम गजानन रख दिया गया।
ऐसे हैं हमारे, बुद्धि और समृद्धि के प्रतीक भगवान श्री गणेश। जिनकी प्रतिक्षा विसर्जन वाले दिन से ही शुरू हो जाती है। क्या छोटे क्या बड़े... क्या अमीर क्या गरीब...सभी अपनी नजर कैलेंडर पर गड़ाए बैठे होते हैं कि, अगले वर्ष गणेश चतुर्थी का महो-उत्सव कब आ रहा है।अंत में एक बात कहना चाहूंगा- "भगवान श्री गणेश" की प्रतीक्षा करने में भी एक मीठा अहसास होता है।
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