योग्य को स्वयं ही परख
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अपने मुंह से कहे गए शब्दों की अपेक्ष द्वारा किए गए कार्य उसकी योग्यता का सही प्रमाण देते हैं। पतित एक राजा था। अपने राज्य को स्थिर और आर्थिक उन्नति के पथ पर कैसे अग्रसर करें, इसके लिए वह हमेशा चिंतित रहता.था। एक बार एक संत उस नगर से गुजरे। राजा ने उनकी काफी कीर्ति सुले थी। चितित राजा संत के पास गए। संत से उन्होंने अपनी सारी समस्याओं के समाधान के लिए विनती की। संत ने कहा - राजन्, तुम्हारी समस्याएं उतनी बड़ी नहीं हैं, जितनी तुम समझते हो।
जिन समस्याओं को सुलझाने के लिए तुम बल प्रयोग कर रहे हो, यदि तुम थोड़े से बुद्धि कौशल से कार्य करते, तो ये समस्याएँ कभी की समाप्त हो गई होतीं। राजा ने पूछा -ऋषिवर मैं आपकी बोतों को समझने में असमर्थ हूँ। कृपया मुझे विस्तार से समझाइए कि आखिर किस प्रकार के कौशल से मैं इन समस्याओं को समाप्त कर सकता हूँ? संत ने कहा - राजन्, अधिकारियों की नियुक्ति करते समय अगर तुम एक नियम का पालन करोगे तो तुम जिस तरह का राज्य चाहते हो, वैसा ही राज्य तुम्हारा होगा।
राजा ने पूछा- कौन सा नियम पालन करू जिससे ऐसा. हो सकता है? संत ने कहा - जब तम किसी अधिकारी की नियुक्ति करो तब तुम यह ध्यान े कि वह जो खुद के बारे में बता रहा है या तुम्हारे सलाहकार, मंत्री वगैरह जो उसके बारे में बोले रहे हैं। तुम उस पर विश्वास मत करो।
तुम उस व्यक्ति को कार्य सौंपकर पहले उसका मूल्यांकन करो। उस व्यक्ति के कार्य करने की शैली को देखकर तुम्हें उसके कार्यों के परिणाम मिल जाएंगे। तब उन परिणामों के आधार पर अपना निर्णय लो। उसके कहे हुए शब्द से अधिक उसके किए गए कार्य उसकी योग्यता का सही परिचय देंगे।
संत की बात को राजा ने माना और कई वर्षों तक सुखपूर्वक राज किया। किसी भी लक्ष्य को निर्धारित करते वक्त उसके अंतिम परिणाम को विचार में रखा जाए तब, ही योजनाएं सही ढंग से क्रियान्वित हो सकती हैं।
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