सीमा से परे कृुछ करने में भले पहले
नाकामी मिले, लेकिन वह सफलता
की ओर बढ़ा कदम होता है।
आ में से कितने लोगों ने भारोतोलन
प्रतियोगिता देखी है? एक महत्वपूर्ण
बात जो आप सभी ने देखी होगी वह यह
है कि प्रत्येक भारोत्तोलक अपनी ज्ञात क्षमता
से कुछ किलोग्राम अधिक बजन उठाने की
कोशिश करता है।
जहां अधिकांश अपनी
इस कोशिश में कामयाब हो जाते हैं, वहीं
कुछ के हिस्से में नाकामी भी आती है। यह
अलग बात है कि इस नाकामी से उन्हें कोई
शिकवा नहीं होता।
कारण, उन्हें अपनी
क्षमता से परे जाकर प्रयास करने का संतोष
अधिक होता है। इसके उलट अधिकांश
मामलों में हम अपनी सीमाओं के भीतर
काम करते हैं शायद ही हम कभी अपनी
सीमा से परे जाकर कुछ करने की कोशिश
करते हों।
इस तरह हम अपने आप को एक
मानसिक बंधन में जकड़ लेते हैं और मानने
लगते हैं कि परंपरागत लक्ष्यों को ही हम
हासिल कर सकते हैं। एक लीडर होने के
लीडरशिप मंत्र
नाते जरूरी है कि हम पूर्व निर्धारित लक्ष्य
से परे एक अतिरिक्त कदम और उठाएं।
एक बार जब आप अंतिरिक्त कदम
उठाएंगे तो आपका सामना किसी न किसी
सुखद आश्चर्य से होगा। इस फेर में भले
ही हम नाकाम हो जाएं, लेकिन वह सही
अरथों में नाकामी नहीं कहलाएगी। कारण,
आपने कुछ बड़ा हासिल करने की कोशिश
की और इसके लिए स्वयं को मानसिक
से तैयार किया। स्वयं को विस्तार देना
जहां बहुत जरूरी है, वहीं यह भी कम
महत्वपूर्ण नहीं है कि इस विस्तार के फेर
में स्वयं को अधिक खींचा न जाए। धीरे-
धीरे ही स्वयं की सीमा बढ़ाएं।
भारोत्तोलक
भी एक साथ दसियों किलोग्राम वजन
बढ़ाने की बजाय कुछ किलोग्राम अतिरिक्त
वजनं ही जोड़ते हैं। हमेशा ध्यान रखें कि
प्रत्येक असफलता वास्तव में सफलता की
ओर बढ़ा एक कदम होता है। अगर आप
उससे सबक सीखते हैं तो असफलता के
चंगुल में फेसने से बच जाते हैं।
-लेखक नेतृत्व प्रशिक्षण संस्था
लीडकैप के संस्थापक हैं,
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